रचना करती है अभिनंदन

क्षमता नहीं किसी में सुन ले
उसके लेखन में गुंजायश
सबका है अपना विज्ञापन

किस रचना को गया सराहा
किसने देखे है सम्मेलन
कौन शब्द दे करे उजागर
किसी हृदय का अन्तर्वेदन
 कहाँ कहाँ पर मिला मान है
और छपी है कितनी पुस्तक
आत्म प्रशंसा के सब  साधन 

किस रचना के योगदान पर
कितने मंच रहै है निर्भर
किस रचना  का शिल्प आनूठा
हावी हुआ सभी के उपर 
कितनी हुई संकलित अब तक
और संकलन का कितनो के
कितनी बार किया संपादन   

बीए एमए पी एच डी की
कितनी सनद बटोरी अब तक
भाषा औ व्याकरण कहां तक
द्वारे आकर देते दस्तक
आलोचक आ शीश झुकाते
करते हैं साहित्यकार का
सांझ सवेरे बस आराधन
ऐसे अद्भुत स्वतःप्रशंसक
का रचना करती अभिनंदन
 

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