कोई वह गीत गाये तो

सुरभि की इक नई दुल्हन चली जब वाटिकाओं से
तुम्हारा नाम लेने लग गये पुरबाई के झोंके
महकती क्यारियों की देहरी पर हो खड़ी कलियाँ
निहारी उंगलियों को दांत में रख कर,चकित होके
 
 
उठे नव प्रश्न शाखों के कोई परिचय बताये तो
लिखा जो गीत स्वागत के लिये, आकर सुनाये तो
 
 
खिलीं सतरंगिया आभायें पंखुर से गले मिलकर
गमकने लग गई दिन में अचानक रात की रानी
कभी आधी निशा में जो सुनाता था रहा बेला
लचकती दूब ने आतुर सुनाने की वही ठानी
 
 
खड़कते पात पीपल के हुये तैयार तब तनकर
बजेंगे थाप तबले की बने, कोई बजाये तो
 
 
लगीं उच्छल तरंगें देव सरिता की डगर धोने
जलद की पालकी भेजी दिशाओं ने पुलक भर कर
सँवर कर स्वस्ति चिह्नों ने सजाये द्वार के तोरण
लगीं शहनाईयां भी छेड़ने शहनाईयों के स्वर
 
 
मलय के वृक्ष ने भेजे सजा कर लेप थाली में
सुहागा स्वर्ण में मिल ले, जरा उसको लगाये तो
 
 
बिखेरे आप ही लाकर, नये, दहलीज ने अक्षत
सजाईं खूब वन्दनवार लाकर के अशोकों ने
प्रतीक्षा में हुई उजली गली की धूप मैली सी
सजाये नैन कौतूहल भरे लेकर झरोखों ने
 
 
मचलती बिजलियों की ले थिरक फिर रश्मियाँ बोलीं
हजारों चाँद चमकेंगें, जरा घूँघट हटाये तो..

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत गीत, पढ़ते पढ़ते मन मगन हो गया।

Udan Tashtari said...

मचलती बिजलियों की ले थिरक फिर रश्मियाँ बोलीं
हजारों चाँद चमकेंगें, जरा घूँघट हटाये तो..


-आनन्द विभोर कर गया....वाह!

Shardula said...

बहुत ही खुशनुमा सा स्वागत गीत!बहुत सुन्दर ... क्या रस और गन्ध की बारात सी उमड़ी है शब्दों में!
कुछ बड़े प्यारे नए बिम्ब :
सुरभि का नई दुल्हन सा वाटिकाओं से विदा लेना.

महकती क्यारियों की देहरी पर हो खड़ी कलियाँ
निहारी उंगलियों को दांत में रख कर,चकित होके -- ये बहुत ही क्यूट!
उठे नव प्रश्न शाखों के कोई परिचय बताये तो --- बहुत सुन्दर!
लिखा जो गीत स्वागत के लिये, आकर सुनाये तो

खिलीं सतरंगिया आभायें पंखुर से गले मिलकर -- वाह!
लचकती दूब ने आतुर सुनाने की वही ठानी --- :)

खड़कते पात पीपल के हुये तैयार तब तनकर --- नया सा बिम्ब!
बजेंगे थाप तबले की बने, कोई बजाये तो

मलय के वृक्ष ने भेजे सजा कर लेप थाली में
सुहागा स्वर्ण में मिल ले, जरा उसको लगाये तो --- बहुत ही सुन्दर !

प्रतीक्षा में हुई उजली गली की धूप मैली सी -- क्या कहें कितना सुन्दर!
सजाये नैन कौतूहल भरे लेकर झरोखों ने

मचलती बिजलियों की ले थिरक फिर रश्मियाँ बोलीं
हजारों चाँद चमकेंगें, जरा घूँघट हटाये तो.. .--एकदम गाने लायक गीत !

कवितायें तो आपकी हमेशा ही पढ़ते रहते हैं, पर आज बहुत दिनों बाद उन पे कुछ लिख के मन बहुत खुश है!
सादर शार्दुला

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