पीर बिना कारण के गाती

गिरजे में, मंदिर मस्जिद में केवल सौदागर मिलते हैं
कोई ऐसा नहीं कहीं भी दे पाये प्रश्नों के उत्तर
 
खिली धूप की सलवट मे क्यों अंधियारे के बीज पनपते
क्यों चन्दा की किरन किसी के मन का आंगन झुलसा जाती
क्यों कर्मण्यवाधिकारस्ते की बदला करती परिभाषा
कैसे किसी हथेली पर आकर के अब सरसों जम जाती
किसका आज विगत के पुण्यों का प्रताप ही बन जाता है
किसके भाल टँगे अक्षर की छवियां धूमिल होती जातीं
क्यों नयनों के ढलते जल पर भी प्रतिबन्ध लगा करते हैं
पीर बिना कारण के गाती आकर कुछ अधरों पर क्योंकर
 
पथवारी पर वड़ के नीचे लगी हुई कुछ तस्वीरों पर
अक्षत चन्दन रख देने से भाग्य कहां बदला करते हैं
खोल दुकानें,जन्तर गंडे ताबीजों को बेच रहे जो
उनका कितना बदला ? भाग्य बदलने का दावा करते हैं
कोई शीश नवाये,कोई सवामनी की भेंट चढ़ाये
श्रद्धा के पलड़े में दोनों की क्यों तुलनायें करते हैं
टिकट लगा कर दर्शन दे जो,वो तो देव नहीं हो सकता
और दलाली करने वाले क्या हैं सच पशुओं से बढ़कर

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

लेन देन का खेल कर रहे,
इज्जत ठेलम ठेल कर रहे,
धनी रहेंगे, सदा रहेंगे,
ध्रुव-कुबेर का मेल कर रहे।

आनन्द पाठक said...

आ0 राकेश जी

बहुत ही सुमधुर एवं सार्वकालिक गीत

कैसे किसी हथेली पर आकर के अब सरसों जम जाती
बधाई
सादर
आनन्द.पाठक

शारदा अरोरा said...

badhiya abhivykti...

विकास गुप्ता said...

सुन्दर कविता

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...