जीवन के इस महानगर में
दोपहरी बीती दफ्तर म
चौराहों पर लिए प्रतीक्षा
बीती सुबह शाम
दोपहरी बीती दफ्तर म
चौराहों पर लिए प्रतीक्षा
बीती सुबह शाम
कहने को भी पल या दो पल
अपने नही मिले
बोते रहे फूल गमलों में
लेकिन नहीं खिले
करे नियंत्रित रखेघड़ी की
दो सुइयां अविरामअपने नही मिले
बोते रहे फूल गमलों में
लेकिन नहीं खिले
करे नियंत्रित रखेघड़ी की
यौवन चढ़े निशा पर लेकिन
सजे नहीं सपना
परछाई ने रह रह पूछा
है परिचय अपना
कोई मिलता नहीं राह में
सजे नहीं सपना
परछाई ने रह रह पूछा
है परिचय अपना
कोई मिलता नहीं राह में
करने
दुआ सलाम
प्रगति पंथ के मोड़ मोड़ पर
विस्तृत डायवर्जन
प्राप्ति और अभिलाषाओं के
मध्य ठनी अनबन
साँसों ने धड़कन ने माँगा
है जीने का दाम
विस्तृत डायवर्जन
प्राप्ति और अभिलाषाओं के
मध्य ठनी अनबन
साँसों ने धड़कन ने माँगा
है जीने का दाम
No comments:
Post a Comment