दीप हूँ जलता रहूँगा

मैं अक्षय विश्वास का ले स्नेह संचय में असीमित 
इस घने घिरते तिमिर से अहर्निश लड़ता रहूँगा 
दीप  हूँ जलता रहूँगा 

बह रहीं मेरी शिराओं में अगिन प्रज्ज्वल शिखाएं 
साथ देती है निरंतर नृत्य करती वर्तिकाएं 
मैं अतल ब्रह्माण्ड के शत  कोटि नभ का सूर्यावंशी 
जाग्रत मुझ से हुई हैं चाँद में भी ज्योत्स्नायें 

मैं विरासत में लिए हूँ ज्योति का विस्तार अपरिम 
जो  ,मिले दायित्व हैं  निर्वाह वह  करता रहूँगा 
दीप  हूँ जलता रहूँगा 

हैं मुझी से जागती श्रद्धाविनित  आराधनाएं 
और मंदिर में सफल होती रही अभ्यर्थनाएँ 
मैं बनारस में सुबह का मुस्करा  आव्हान करता
सांझ मेरे साथ सजती है अवध की वीथिकाएँ

मैं  रहा आराध्य इक भोले शलभ की अर्चना का
प्रीतिमय बलिदान को उसके अमर करता रहूंगा 
दीप हूँ  जलता रहूंगा 

साक्ष्य में मेरे बँधे   रंगीन धागे मन्नतों के
सामने मर्रे जुड़े संबंध शत जन्मान्तरों के
में घिरे नैराश्य में हूँ संचरित आशाएं बनकर
में रहा हूँ आदि से, हर पृष्ठ पर मन्वंतरों के

मैं रहा स्थिर, और मैं ही अनवरत गतिमान प्रतिपल 
काल की सीमाओं के भी पार मैं चलता रहूँगा 
दीप  हूँ, जलता रहूँगा 

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