सूर्य फिर करने लगा है

रंग अरुणाई हुआ है सुरमये प्राची क्षितिज का
रोशनी की दस्तकें सुन रात के डूबे सितारे

राह ने भेजा निमंत्रण इक नई मंज़िल बनाकर
नीड तत्पर हो रहा पाथेय नूतन अब सजाकर
सूर्य फिर करने लगा है उग रहे दिन के पटल पर
निज सही, संदेश देता, पांव रख आगे बढ़ा कर

वर्ष यह नव सामने है एक कोरा पृष्ठ वन कर
क्या इबारत तुम लिखो, अधिकार में केवल तुम्हारे

तुम लिखो मंगलाचरण या मंत्र संध्यावंदनों केy
आस की गाथा अधूरी , बोल या आभिनंदनो के
ये तुम्हे करना सुनिश्चित और तब है शब्द चुनना
सज सकें जो भाल की गरिमा बढ़ते चंदनो से

नयन में क्या आँजना है आज निर्धारित करो तुम
तो सजेंगे कल सहज ही स्वप्न स्वर्णिम हो तुम्हारे

नाम गति है ज़िन्दगी का, सूर्य फिर कहने लगा है
हो गया पाषाण सा निष्प्राण जो भी रुक गया है
पंथ के विस्तार को करते नियंत्रित चल रहे पग
 सत्य यह दिनरात का चलता हुआ रथ लिख गया ह

कल सजाये राह क्या निर्भर तुम्हारे निर्णयों पर
सामने हो शून्य या स्वागत करें खुल राजद्वारे


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